प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
स्वागतेय बसंत
ऋतुराज बसंत सुखद आली, मनभावन सुरभि हिय चित्त हरै।
वन बाग तड़ाग सरोवर लौं , मनभायी पुरबा केलि करै।।
बरै पियरी सरसौं मटकै खेतन, बस अंत भयो सखी शीत कठिन,
मंजरी खुली अमराई गमक,रुचि भोर अरुणिमा उमंग भरै।।
चंचल चितवन कजरारे नयन, पूनौ आभा आरोह वयस।
पारुल पांखुरि मधुरोष्ठ रसिक, लखि पिघला तिल तिल ह्रदय अयस।।
नखशिख भूषण अरुणाभ चिबुक, मतवारी अंगना बृजवारी,
झीनो घूँघट गजगामिनि तिय, प्रखर प्रेम उत्पल कसकस।।
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