मधु के मधुमय मुक्तक मधु शंखधर प्रयागराज

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*त्याग*


◆दूजों का हित करने को जो,अपना भी सुख त्याग सके।
नव आशा की ज्योति जलाकर, अंधकार में जाग सके।
अपना सब कुछ अर्पण करना, इतना भी आसान नहीं।
भाव त्याग जब अन्तर्मन में,सर्वस्व वही  त्याग सके।।


◆ त्याग दधीचि का यही समझो,अस्थि सहज ही दान दिया।
कर्ण सहज ही दान दिया था, कवच व कुंडल जान दिया।
त्याग भरत का जीवन जानो, राज त्याग कर बैठे जो,
हँसके त्यागे जीवन अपना,भारत माँ ने मान दिया।।


◆ जब तक मन में लोभ बसा हो,त्याग भाव क्या आएगा?
पाने की बस इच्छा हो जब, दान भला  कर पाएगा।
मन पर धरे नियंत्रण जो जन, सहज भाव बस वो पाए,ं
*मधु* कहती है बात निरंतर, *त्याग* अमर हो जाएगा।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*19.01.2020*


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...