*स्वामी विवेकानंद*
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हे परमहंस के शिष्य ,
जला दी अलख भरत जन की।
बने हो ज्योतिपुंज ऐसे,
मिटा दी तिमिर मनष मन की।
चलाया मिशन एक ऐसा,
विकास की राह जो लाया।
सनातन धर्म की वृद्धि,
का ही संकल्प जो भाया।
शिकागो में दिया भाषण,
देशभक्ति जगाता है।
युवा मन में विवेकानंद,
यही इक लौ को लगाता है।
जीये पैंतीस बरस लेकिन,
सभी के दिल में जिंदा हो।
दिखा नव राह मुक्ति की
उड़े तुम ज्यूँ परिंदा हो।
ये जीवन देश के हित में,
समर्पित कर दिया तुमने।
रामकृष्ण को श्रद्धा सुमन,
अर्पित कर दिया तुमने।
बने भारत माँ का लाल,
जिसको हम सर झुकाते हैं।
तुम्हारी राह पर चलकर,
वतन पर जाँ लुटाते हैं।
चले आओ युवाओं में,
नया उत्साह लाओ फिर।
जन्म लेकर विवेकानंद,
नवल भारत सजाओ फिर।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
मधु शंखधर प्रयागराज स्वामी विवेकानन्द
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