नाम- पूर्णिमा शर्मा "पाठक" 168/11/AA अनुग्रह कुंदन नगर अजमेर मेरा भृमण भाष संख्या 9588873850
माँ की यादें
जहाँ जहाँ नज़र मेरी गई,
यादें निशानी आपकी।
आसुओं से आँख के, झरती हैं यादें आपकी।
देखूं जहाँ में दिख रहीं हैं, रिक्शो की प्यारी कतारें।
उनके ऊपर आ रहीं, जैसे सवारी आपकी।
संसार में जो लोग हैं,वो दोस्त कम दुश्मन हज़ार।
अहसास करवातें मुझें वो गैरहाजरी आपकी।
जब कभी मिलता हैं कोई, निष्कपट मन से मुझें।
अहसान से सर झुकता हैं, कि ये निशानी आपकी।
सुनु किसी के प्रिय की बातें, या बिछड़े प्यारा कोई।
आतीं यादें और रुलाती हैं, जुदाई आपकी।
नया पुराना जानतीं हूँ, रोती भी हूँ हंसतीं भी हूँ।
नया पुराना कुछ नहीं बस यादें ताज़ा आपकी।
क्या मिला और क्या नहीं, हैं क्या फिकर इस बात की।
अंत में तो पास मेरे, यादें अनोखी आपकी।
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