आशा त्रिपाठी
हरिद्वार
सुरभित जीवन की रस धारा,
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
मन भव मृदुल ,सहज दृग दीपक,
स्वप्न सरस नव,छवि मनमोहक।
चितवन चपल मिलन सुखदायक।
सुधि तेरी अविराम सहारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
पग ध्वनि सुन श्वांसों पर कम्पन।
प्रणय प्रीत नव भाव आलम्बन।
सुख सोना करुणा रस बंधन।
निर्मल प्रीत सुरसरि जल धारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
हृदय राज पुलकित यह तन मन,
नवल श्रृंगार तुम्ही नवजीवन।
आत्म प्राण प्रिय हो जीवन धन।
तुम आदि-अंत लख प्रीतम प्यारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
इच्छाओं की मधुर आरती,
बन वीणा सुखसार वारती।
तुमसे प्रिय जीवन हारती।
तुझ पर प्रिय यह जीवन वारा
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
अक्षय स्मृति मम प्राण प्रीत,
सुरभित निकेत है प्रखर रीत।
रोंमों मे पुलकित अमिय मीत।
मधुमय बसन्त जीवन न्यारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
प्रिय तुमसे ही अक्षय सुहाग,
मधुमित काया नव वीतराग।
सुमधुर गुंजन ,सुधि हो विहाग।
गुजिंत मम उर प्रीतम प्यारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
श्याम मेरे हिय की गति जानो।
मै हूँ मीरा सम राधे मानो।
दृग दीपक मम स्वप्न अधारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
*आश* गीत प्रिय स्नेह का बन्धन।
माथ की बिन्दियाँ भाव का कंगन।
कनक मणि मम हिय उजियारा।
*प्रिय बिन सूना ये जग सारा।*
✍आशा त्रिपाठी
१९-०१-२०२०
हरिद्वार
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