विषय आवाज
विधा छन्दमुक्त
आवाज हूँ, मै आवाज हूँ
आवाज हूँ, मै उस बेटी की
करती चित्कार माँ के कोख से है।
मुझे मत मारो, मुझे जीने दो
आने दो, जग में आने दो।
प्रतिरूप ही हूँ,माँ तेरा
तेरी ही तो परछाई हूँ, कँरुगी
स्वप्न तेरे पूरे जो माँ रह गये अधूरे है
संकीर्ण विचारों को त्यगो ,बेटे बेटी में
भेद नही ।आने दो जग में आने दो
मुझे मत मारो मुझे जीने दो।
आवाज हूँ मै, उस बेटी की
जो सरेराह लुटी जाती
नोची जाती काटी जाती
एसिड से जलाई जाती है
करती गुहार न्याय की है
अब और नही,अब और नही
कब तक होगे यूँ अत्याचार
जीने दो हमको जीने दो।
आवाज हूँ मै उस दुल्हन की
अधजली पड़ी जो शैय्या पर
दुख सहे , सहे है अत्याचार
दहेज की पीड़ा से पीड़ित है
करती है प्रार्थना प्रभु से वो
बेटी का जीवन मत देना
है जन्म कठिन है,है मृत्यु कठिन
दूभर है उसका जीना।
आवाज हूँ मै उस मात पिता की
जिनको अपनों ने छोड़ दिया
बेबस बेहाल हाल उनका
जीने को मजबूर किया
नही मोल जिन्हे माँ की ममता का
नही मान पिता के प्रेम का है
दो वक्त की रोटी दे न सकें
हालत पर उनकी छोड़ दिया।
आवाज हूँ मै , आवाज हूँ मै।
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
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