अमित शुक्ल कब तक तसव्वुर से बहलाएँ खुद को।

कब तक तसव्वुर से बहलाएँ खुद को।
 कभी बुझाए कभी जलाएं खुद को।
आज तुमको भुलाने की कसम खाई है।
चलो फिर आज आजमाएं खुद को।
तुम्हें तलाशने से जो मिले फुर्सत।
तब कहीं जाकर नजर आएं खुद को।
गुजरता रात का सफर सिसकिंयों के तले।
रख के तकिया मुंह पर खुद से छिपाएं खुद को ।
सौ सवाल आते हैं अमित तुम को लेकर।
तुम ही बताओ अब क्या बताएं खुद को।
      @ अमित शुक्ला @


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