अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
हाल में ही एक यात्रा के दौरान भीख माँगते एक 20-21 वर्षीय बहन को देखा और उसकी दयनीय स्थिति, मनोदशा देखकर लगा कि जहाँ आज एक तरफ हम बेटी दिवस मना रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हमारी बहन,बेटियों की वास्तविक स्थिति क्या है....
*देखा एक विवश नारी को*.....
बेबस आँखें , निर्बल काया,
कांतिहीन मुख पे दुःख छाया।
बिखरे बाल,विक्षिप्त सी बातें,
तकते सब ही आते जाते।
ममता का आँचल फैलाये।
दया मिले न बेचारी को।।
देखा एक विवश नारी को..
था अबोध शिशु वक्ष से लिपटा,
मानों भाग्य देश का सिमटा।
पेट भरे शिशु का कैसे वो ,
थी असहाय बहुत जैसे वो।
मिल जाता संतोष हृदय को।
दंड हो यदि अत्याचारी को।।
देखा एक विवश नारी को....
उदर भरण था बहुत जरूरी,
भिक्षुक बनना हुई मजबूरी।
था वह कोई प्रेम निशानी,
या फिर हवस की एक कहानी
दिन प्रतिदिन की घटनाओं से
कौन बचाये बेचारी को....😢
देखा एक विवश नारी को...
क्यूँ समाज है निष्ठुर सोया,
क्यूँ झूठे सपनों में खोया।
त्यागा,भोग की वस्तु समझकर,
पाहन समझा,हीर परखकर।
सृष्टि सृजन की धुरी है भामा।
तरसेंगे सब किलकारी को।।
देखा एक विवश नारी को.....
देवालय की पूजित प्रतिमा,
वेद पुराणों की जो महिमा।
वनिता की यह देख दुर्दशा,
मन होता है विचलित सहसा
कब तक नारी सहन करेगी,
कामी वहशी व्यभिचारी को।।
देखा एक विवश नारी को.....
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
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