अवनीश त्रिवेदी "अभय" हमराह चाहिए
जिंदगी की राह पर, चले हैं अकेले खूब,
अब आगे चलने को, हमराह चाहिए।
जीवन के सभी गम, मिल कर मिटा सकें,
ऐसी कोई हमें कभी, तो पनाह चाहिए।
जिस पे चल के पायें, मंजिलें सदा ही हम,
अब सफ़र में कोई, वैसी राह चाहिए।
हैं दर्शनीय वस्तुएँ, जहाँ में "अभय" खूब,
किसे, कहाँ, कैसे देखे, वो निग़ाह चाहिए।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें