अवनीश त्रिवेदी "अभय"
कुण्डलिया
बसंत सुखद सदा रहे, जड़ चेतन आनंद।
कविता वनिता चमक हो, रचें मनोरम छंद।
रचें मनोरम छंद, खूब रस भूषण छाये।
सरस् बने मकरंद, हर तरफ खुशबू आये।
कहत "अभय" कविराय, अब मिले विरहणी कंत।
वैर सभी बिसराय, मनाओ सब जन बसंत।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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