अविकारी आत्मा स्वप्निल जैन

अविकारी आत्मा 


ए मेरी आत्मा 
तू  मुझे पिंजरा बना कर छोड गई 


मैने कितने पाप किये 
उसका करता हू प्रायश्चित 
तू वापस आजा अभी तो 
मत  जा एसे छोड कर



कल  मॉ कि दवाई लाऩी है 
बेटे कि फिस भी डालनी है 
उन सब का ऱखकर ख्याल 
एक बार वापस आ मेरे यार 


सोचा कर लू अभी कुछ काम 
फिर कर  लूगा निज आत्मा मे आराम 
पर क्या पता था तु चल देगी 
मुझे एसे छोड कर 


परमात्मा को भी ध्याया नही 
निज अन्तर मे भी गया नही 
तेरा मेरा कर कर के 
ये जीवन मेरा निकल गया 


तू रूक जा मेरी आत्मा 
कुछ जीने दे मुझे और दिन 
लौट कर वापिस आजा 
लौट कर वापिस आजा 


स्वप्निल प्रदीप जैन


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