बलराम सिंह यादव धर्म अध्यात्म व्याख्याता

आकर चारि लाख चौरासी।
जाति जीव जल थल नभ बासी।।
सीय राम मय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  चार प्रकार के जीव चौरासी लाख योनियों में जल,पृथ्वी और आकाश में रहते हैं।सम्पूर्ण विश्व को श्रीसीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  उत्पत्ति के स्थान,मार्ग व प्रकार के आधार पर जीव चार प्रकार के होते हैं।
1--जरायुज अथवा योनिज---
मृगादि पशु,दोनों ओर दाँत वाले व्याल,राक्षस,पिशाच और मनुष्य आदि जरायुज अथवा योनिज कहलाते हैं क्योंकि ये सभी जरायु अर्थात झिल्ली में बन्द योनि मार्ग से जन्म लेते हैं।
 2--अण्डज---
  विभिन्न प्रकार के पक्षी, सर्प,घड़ियाल,मछली, कछुआ आदि अण्डज हैं क्योंकि ये सभी अण्डे से पैदा होते हैं।इनमें जलचर व थलचर दोनों प्रकार के जीव होते हैं।
3--स्वेदज-- स्वेद अर्थात पसीना।
  जो पसीना और गर्मी से उत्पन्न होते हैं उन्हें स्वेदज कहते हैं जैसे जुआँ,चीलर,मच्छर, मक्खी, खटमल,डांस आदि।
4--उद्भिज--
बीजों अथवा शाखाओं से उत्पन्न होने वाले स्थावर उद्भिज कहलाते हैं जैसे विभिन्न प्रकार के वृक्ष, लताएँ, वनस्पतियां आदि।इनके भी कई प्रकार होते हैं जैसे विभिन्न प्रकार के फल और फूल।जिनमें फूल और फल दोनों होते हैं और फल पक जाने पर जिनका नाश हो जाता है उन्हें औषधि कहते हैं।जिनमें फूल नहीं होता है और केवल फल होता है, उन्हें वनस्पति कहते हैं।जिनका अस्तित्व फल और फूल देकर भी बना रहता है उन्हें वृक्ष कहते हैं।मूल या जड़ से ही जिनकी लताएँ पैदा होती हैं और जिनमें शाखा नहीं होती हैं उन्हें गुच्छ कहते हैं।एक ही मूल से जहाँ बहुत से पौधे उत्पन्न होते हैं उन्हें गुल्म कहते हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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