बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान* हरीश शर्मा

*बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान*


*संक्रान्ति पर्व - अरे इंसानों तुम तो हमको दाना खिलाकर पुण्य कमाया करते थे - डॉक्टर निरुपमा उपाध्याय*


*आज हमने क्या अपराध किया जिसकी सजा देकर तुमने हमको तडफ तड़फ कर मरने को विवश कर दिया।*


*आज विदेशी हमारी संस्कृति से खिलवाड़ कर हमको अपने हाथों की कठपुतली बना कर वो कराने में संलग्न हैं जो कदापि ग्रहण करने योग्य नहीं है।*


*लक्ष्मणगढ़ - (सीकर) - 13 - जनवरी - 2019*


बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान की और से चाईनीज मांझे का प्रयोग ना करने को लेकर सन्देश देते हुए कवयित्री डॉक्टर निरुपमा उपाध्याय ने कहा कि  2020 प्रारम्भ हो चुका है।नववर्ष का प्रथम पर्व मकर संक्रान्ति आने वाला है। लोहड़ी ओर मकर संक्रान्ति की मस्ती में सभी व्यस्त हैं। क्या बच्चे ,क्या बड़े,सभी को प्रतीक्षा रहती है इस पर्व की। होनी भी चाहिए। हमारी संस्कृति में उत्सवों का बहुत महत्व है। उत्सव से जीवन में उल्लास आता है,परस्पर सौहार्द का वातावरण मिलता है,लोग दान पुण्य करते हैं। इस पर्व का मुख्य आकर्षण है पतंग बाजी। आकाश में उड़ती रंग बिरंगी पतंगें सभी के मन को मोहित औऱ उल्लासित करती हैं ।
          अपनी परम्परा का निर्वाह करना हम सबका परम् कर्तव्य है,लेकिन परम्परा को निभाने के लिए किसी को कष्ट देना,क्षति पहुंचाना,जीवन समाप्त करना भी क्या हमारी संस्कृति है। *हम तो" सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः'का उद्घोष करने वाले हैं, हम उस शिवि के वंशज हैं जिन्होंने एक घायल पक्षी की रक्षा में अपने अंगों को काट काट कर तराजू में रखने में पल भर की देर भी ना लगायी, राजा दिलीप ने गौ माता नन्दिनी की रक्षा के लिए सिंह के सामने अपनी बलि देने में संकोच भी नहीं किया,* लेकिन आज विदेशी हमारी संस्कृति से खिलवाड़ कर हमको अपने हाथों की कठपुतली बना कर वो कराने में संलग्न हैं जो कदापि ग्रहण करने योग्य नहीं है। हमको अपने बच्चों को समझाना होगा कि वो हिंसक प्रवृति की ओर अग्रसर न हों।आज बाजार में प्रत्येक दुकान पर चायनीज माजा उपलब्ध है।अधिक लाभ कमाने के लोभ में दुकानदार ये माझा बेचते हैं और हमारे बच्चे इसे खरीदते हैं।इस माझे के हर वर्ष कितने निरपराध शिकार होते है किसी की गर्दन, किसी का जबड़ा,किसी का हाथ,किसी का पैर और कई बार तो जान भी चली जाती है।आकाश में पंख फैला कर उड़ने वाले परिन्दे तड़फते हुए जमीन पर आकर दम तोड़ देते हैं। फिर पूछते हैं अरे इंसानों तुम तो हमको दाना खिलाकर पुण्य कमाया करते थे ।आज हमने क्या अपराध किया जिसकी सजा देकर तुमने हमको तडफ तड़फ कर मरने को विवश कर दिया।क्या यही है हमारी संस्कृति ?क्या हमारा जमीर सो चुका है?क्या किसी के जीने मरने से हमको कोई फर्क नहीं पड़ता?हम अपने लाभ के लिए,अपने मनोरंजन के लिए कुछ भी करेंगे, अपनी मनमानी करेंगे ?
        तो  समझ लो  सड़क पर चलने वाला,स्कूटर, मोटर साइकिल से जाने वाला युवा,अपनी छत पर खड़ा वो बच्चा, मेरा ,आपका ,माझा बेचने वाले व्यापारी का ,किसी का भी हो सकता है।पेपर के मुख पृष्ठ पर हृदय विदारक वो तस्वीर किसी के भी बेटे,भाई, पिता की हो सकती है।मेरा अनुरोध है जगिए अपने दो पैसे कमाने की खातिर किसी भी जीव की हत्या करने का पाप मत करिए,किसी निर्दोष के जीवन के साथ खिलवाड़ करने का प्रयास मत करिये। जाने अनजाने किसी को कष्ट देना अपराध है। संक्रान्ति का पर्व हमको पुण्य कर्म करने की शिक्षा देता है,इसका उपहास मत करिए। अपनी सांस्कृतिक विरासत को सँजोये रखिये,इसी में आपका,हमारा और पूरे समाज की हित निहित है। सर्वे भवन्तु सुखिनः, अतः चाईनीज मांझे का प्रयोग ना कर इन निर्दोष जीवों व आम नागरिक को बेमौत तड़प तड़प कर मरने से बचाए। इस संदेश के साथ बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान आपका हार्दिक स्वागत व अभिनन्दन करता है।


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