*बिसरी हुई यादों के मंज़र निकलने लगते हैं।*
*सीने में चुभ-चुभके खंज़र निकलने लगते हैं।।*
*क्या कमी रह गई, जो पूरी होती नहीं आरज़ू।*
*बोई जहाँ भी फ़सल, खेत बंज़र निकलने लगते हैं।।*
*मेरी क़िस्मत ने तो, आस्तीन में पाले हुए हैं साँप।*
*निकालूँ विष, तो ख़ून के समंदर निकलने लगते हैं।।*
*या ख़ुदा कर तो रहम, अब कुछ मेरी क़िस्मत पर।*
*माँगू थोड़ा सुक़ून, तो बवंडर निकलने लगते हैं।।*
*डॉ. ज्योति मिश्रा*
*बिलासपुर ( छत्तीसगढ़)*
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