डा. अखण्ड प्रकाश
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मोबाइल नंबर 9839066076
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*कविता*
देखो ये लोग हिचकियों को तान समझते,
रोते हुए ओंठो को ये मुस्कान समझते।
बारूद की आवाज का संगीत बना कर,
ये आह को अलाप के समान समझते।।
इन्सानियत के खून से ये खेलते होली,
मासूम द्रोपदी की लगाते हैं ये बोली।
मिल जाए आदमी जो कहीं मार दें गोली,
चाकू को पसलियों का ये मेहमान समझते।।
ये आह को अलाप के समान....
करते हैं बात रोज़ ये अमन ओ कम्यून की,
इस देश की जनता की और उसके जुनून की।
आती है इनके मुंह से बू इंसा के खून की,
ये आदमी के खून को जलपान समझते।।
ये आह को अलाप के......
ऊपर से हैं सुभग मगर अन्दर अंधेरा घोर,
विशधर को भी कर लें हज़म ये चमकते से मोर।
एकदम से नीच महा नीच है सफेद चोर,
हम ही नहीं तुम ही नहीं ये खुद भी समझते।।
ये आह को अलाप........
इनकी नजर में स्वर्ण ही जीवन का मर्म है,
जैसे भी हो लूटो यही बस इनका धर्म है।
सद्भाव प्रेम से इन्हें तो आती शर्म है,
ये प्रेम के प्याले को पीकदान समझते।।
ये आह को अलाप के समान समझते....
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