डा.नीलम अजमेर
इक तेरी आहट की आस है मुझको
तू कहाँ है ये जरा बता दे मुझको
नज़र दूर तलक जा के लौट आती है
अब किससे पता पूछूं तेरा बतादे मुझको
हर बार झलक दिखला के लौट जाता है
ना जाने क्यों हरबार रुलाता है मुझको
दरो-दीवार पे हर सूं तेरा ही नाम लिखा है
आईना भी देखूं ,तो तू ही नजर आए मुझको
अब तो नाम भी अपना सा लगे है तेरा
हर कोई तेरे नाम से ही पुकारे है मुझको।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें