"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।"
सादर धन्यवाद।
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डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' दोहा मुक्तक दाँव-पेंच अब छोड़ दो,
डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' दोहा मुक्तक दाँव-पेंच अब छोड़ दो,करो न थोथे काम। मिट जायेगा इस तरह, नहीं चलेगा नाम। उम्र बीतने तलक अभी,गर नहिं आया होश, 'सहज' यकीनन तय शुदा, मानो काम तमाम। @डा.रघुनाथ मिश्र 'सहज' अधिवक्ता/साहित्यकार
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