डा० भारती वर्मा बौड़ाई धरा जमीन कविता

डा० भारती वर्मा बौड़ाई


धरा
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मैं 
सबकी 
प्रिय धरा 
बोल रही हूँ 
अपने 
मन की परतें 
आप सबके 
समक्ष खोल रही हूँ 
हो गया आज 
अति आधुनिक किसान 
कम कार्य करके 
अधिक उपज 
पाना चाहता है 
तभी तो 
यूरिया से भी आगे बढ़ 
मुझमे न जाने कितने 
रसायन डालता जाता है 
उसकी बदौलत अधिकतम उपज 
उन्हें तो मालामाल कर रही है,
मेरी प्राकृतिक शक्ति का 
क्षरण करते हुए 
लोगों को असाध्य रोगों से 
जकड़ रही है 
मौत के मुँह में ढकेल रही है...!
करबद्ध निवेदन करती हूँ 
प्रत्येक कृषि स्वामी से 
घरों में गृहवाटिका में 
शाक-भाजी उगाने वालों से 
छोड़ दीजिए अधिक कमाई के मोह में 
रसायनों  का प्रयोग,
जैविक कृषि के तरीके अपनाइए 
जैविक खाद  बनाएँ और बनवाइए
मेरी प्राकृतिकता को भी रखें सहेज 
लोगों के स्वास्थ्य को 
बिगड़ने से बचाइए
मैं आपकी धरा 
मुझे मरने से बचाइए......!!!!!!!!
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई


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