डाॅ.रेखा सक्सेना
*बसंत के रंग* 🌻🌻
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ओ कुसुमाकर, ओ ऋतुराज,
प्रमुदित नर-नारी सब आज।।
तेरा आगमन, बड़ा मनभावन,
तन- मन को करता है पावन।।
'सरस्वती' का प्रकटीकरण है,
उल्लासपूर्ण अंतः करण है।।
ना जाड़ा है, ना गर्मी है ,
संदेश संतुलन धर्मी है।।
दिगदिगन्त मादकता छाई
सरसों भी फूली न समाई ।।
कलियों ने अवगुन्ठन खोले
भंवरें भी गुन गुन हो डोले।।
वन- उपवन सौरभ महका है,
प्रेमाकुल खग- दल चहका है।।
विविध पुष्प चूनर सतरंगी,
धरा- वधु ओढ़े निज अंगी।।
इस बदलाव का है अभिनंदन,
मधुमास का है जग- वंदन ।।
वीणावादिनी शुभ वरदायिनी
कुहुक तान कोकिला सुहानी।
🌻स्वागतम् ऋतुराज🌻
स्वरचित डाॅ.रेखा सक्सेना
मौलिक 29-01-2020
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