_डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'
दोहा गीत-
विषय- प्रणय
प्रणय निवेदन प्रेम का, कर लो प्रिय स्वीकार।
माला भावों की लिए , प्रीति खड़ी है द्वार ।।
छवि अनुपम दृग देखते, मिले कहीं एकांत,
दूर प्रेम आभास से , मन रहता है शांत,
चलते -फिरते जा रहा, हृदय प्रेम के पास ,
प्रियतम मेरे हो गये , एक यही विश्वास,
बने हकीकत प्रीति अब, उठते हृदय विचार।
माला भावों की लिए , प्रीति खड़ी है द्वार ।।
कली प्रणय की खिल रही , नित्य विकल अनुराग,
अकस्मात दर्शन मिलें , प्रीति रही हिय जाग,
मन - मंदिर में आस के , जले प्रेम के दीप,
यादों में बैठा हृदय , मोती जैसे सीप,
चिंतन में बिन एक के, फीका सब संसार।
माला भावों की लिए , प्रीति खड़ी है द्वार ।।
प्रणय सरीखे बन रहो, अब कोई आलेख,
विकल नैन शीतल बनें , चंद्रवर्ण को देख,
मधुर-मधुर मुस्कान लब, हृदय मनन में चूर,
चित चिंतन में पास हैं, कब रहते वह दूर,
प्रारब्धों के मेल में , प्रभू बने आधार।
माला भावों की लिए , प्रीति खड़ी है द्वार ।।
*_डाॅ0 महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'*
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