----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
.परिंदे अब कहां जाएं...........
तकदीर के मारे परिंदे,अब कहां जाएं?
वक़्त के मारे ये सारे ,अब कहां जाएं ?
किसे एहसास है , इनके बेचारगी की ;
फिज़ा में जहर हैं घुले,अब कहां जाएं?
कहीं तो दिख जाए,कोई ठौर राहत के;
मंज़िल है अनजाने , अब कहां जाएं?
ये तो वक़्त वक़्त की बात है यार मेरे ;
हर तरफ हैं जलजले,अब कहां जाएं?
लाख कोशिशों के बाद रोशनी है नहीं;
दौड़ती नज़र में अंधेरे,अब कहां जाएं?
जान अकेली होती तो गम नहीं कोई ;
साथ में हैं पूरे कुनबे , अब कहां जाएं?
ऊपरवाले पर ही उम्मीद बची"आनंद"
कोई हल तो निकले, अब कहां जाएं?
----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
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