देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी
छोड़कर नहीं जाया कीजिए............
छोड़कर इस तरह,कहीं नहीं जाया कीजिए।
कसम है सनम, ख्यालों में आया कीजिए।।
बेरुखी से दिल कहीं हो न जाए बिस्मिल ;
बहार की फिजाएं कमाल,न जाया कीजिए।।
हम तो बैठे हैं , पलक पांवड़े बिछा कर ;
भीगते होठ छूकर, दिल में समाया कीजिए।।
मत जाइए कहीं धड़कते जिगर को छोड़कर;
जिगर को जिगर के करीब लाया कीजिए।।
उम्मीद जगी है फसल - ए - बहार देखकर ;
रूठकर उम्मीद पर पानी न फिराया कीजिए।।
ख़ामोश लब बहुत कुछ कह जाते हैं ;
लब के पैग़ाम को दिल से लगाया कीजिए।।
दिल की प्यास ज्यों - ज्यों बढ़ चली"आनंद";
दिल की प्यास दिल से मिटाया कीजिए।।
--------------- देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
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