देवेन्द्र कश्यप 'निडर'
सीतापुर-उत्तर प्रदेश
दीपक ----------------------------
पैदा स्वभाव ऐसा कर लो , जैसे दीपक का होता है
हो महलों या झोपड़ियों में , रोशनी भेद न करता है
रोज रोज वो जल करके, आलोकित जग को करता है
पर नहीं किसी से जीवन में, वो लेश मात्र भी जलता है
समता स्वतन्त्रता कारण ही, वो विश्व विभूषित होता है
नित ईर्ष्या से दूरी रखके , वो घर घर पूजा जाता है
जो जीवन में निज के उर का , जला दीप ना पाया है
वो अज्ञान अंधेरे में पड़कर , कर देता जीवन जाया है
न झुकता दीपक पैसों से , न ही तोप और तलवारों से
'निडर' भाव से लड़ जाता, वितान हुए अंधियारों से
साहस तो देखो दीपक का , जो तम से लड़ता रहता है
नहीं डालता हथियारों को जब तक वो ज़िन्दा रहता है
अपने जीवन में जो मानव इक दीप नहीं बन सकता है
विश्वास मानिए मेरा भी , वो मनुज नहीं बन सकता है
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