*राम*
यूँ ही नहीं समा गये,
जनमानस में राम
लोकादर्श के गढ़े
नवल धवल प्रतिमान
पित्राग्या धारण करी
रचा एक आदर्श
दारा ,भ्राता संग ले
वन गमन किया सहर्ष
जीवन मुक्त किया लंकेश
बाँध बना सागर पर
पुनरागमन कर जन्मभूमि को
हर्ष दिया जनता को
पाया सुख फिर भी नहीं
किया भार्या त्याग
जन इच्छा का मान रख
पाई विरह की आग
गरल विरह का पान कर
कर्म किये निष्काम
इसीलिये स्थापित मन में
हर हिन्दू के राम
*डॉ.आभा माथुर*
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ.आभा माथुर राम
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