डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव  पटना - बिहार हाँ मजदूर हूँ मैं

डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
 पटना - बिहार
 मोबाइल  नं-95768150
हाँ मजदूर हूँ मैं
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 मजदूर हूँ मैं-
 बुद्धिजीवी, शैक्षिक,
बंधुआ मजदूर!
उन शैक्षणिक संस्थानों के / जहाँ-
स्वयंप्रभु हैं इतने समर्थ-
 करते शासन-
कर्मियों पर -
साँस लेने की भी नहीं फुर्सत,
 ऐसा अनुसाशन!
कार्य करते, कर्मी कोई
कभी हो जाए बीमार
होकर बेहोश, ब्रेन हैमरेज, हार्ट सर्जरी
या अन्य सर्जिकल खतरनाक, स्थियों से
हो लाचार - 
आई-सी - यू में हो जाए दाखिल, 
नहीं होती संस्था से
कोई सहयोग हासिल...
 नहीं मिलती शुभकामनाएँ!
वरन, रखे जाते गिरवी-
कर्मियों के आधिकारिक-
 संचित आर्थिक अवलंबों के
 प्रपत्र और साक्ष्य! 
 मिलती, तुरत सेवा देने या त्यागपत्र देने की-
 मौखिक यातनाएँ!
 गर मौत को जीत 
आ भी गए कर्मी.,
 तो नहीं मिलती,
जीवित रहने की बधाई-
सेवा देने की अनुमति -
मिलती-
 कार्य मुक्ति की चिट्ठी-
सेवा निवृत्ति!
 हमारे श्रम, खून पसीने
 नहीं काम आते अनाथों, असहायों के।
अभावग्रस्त, निरक्षर-
कचरा बींनते बच्चों के।
नहीं थमायी जाती उन हाथो मे किताबें,
 देह पर कपड़े, 
आँखों में उम्मीदे, शिक्षित भविष्य का सूरज.....!
वल्कि सींचते हैं वे-
उन स्वयंप्रभुओं के
 अय्याशियों के पौधे।
बेवश-आँचलों के धब्बे! 
 दुकानों,होटलों, कम्पनियों 
कई- कई शिक्षण संस्थानों के भवनों की नींव!
 नित नव- नव विदेश भ्रमण की
तरकीब!
कितने विवश लाचार हैं हम।
हाथ - पैर, आँख
शरीर - सामर्थ्य कीसौंपकर सम्पूर्ण पूंजी
 नहीं दे सकते, किसी को राहत -
 सुख की कुंजी!
क्योंकि बिका हुआ है-
 मेरा समय, खून और श्रम,
बिकी हुई हैं साँसे-
 पर, जीने का है भ्रम....
 हम गए-बीते हैं-
 उन अशिक्षित,  गंवार मजदूरों से भी
जिन्हें आठ घंटे बहाकर पसीने-
 मिलते तीन- चार - पाँच सौ तक की रोजी! 
 न मिले  इच्छानुसार
 कल दूसरा ठाँव!
इस गाँव नहीं तो उस गाँव! 
   मगर ये शिक्षित मजदूर -
  हैं कितने मजबूर......? 
 कागज के चंद टुकड़े पाकर
 लिखते भविष्य  भारत के
      सृजते-
 डॉक्टर, वकील, इंजीनियर  पत्रकार
और न जाने कितने - 
नेता, अभिनेता, कलाकार!
 पर नहीं सृज सकते अपना भाग्य-
  हैं ऐसे मजबूर....
 हाँ हम हैं मजदूर!


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