डॉ मंगलेश जायसवाल पर्यावरण कविता

*पर्यावरण बचाओ*


मेरे मन में एक ख्वाब पल रहा है,
धुंध बहुत है फिर भी तन जल रहा है,
बेपरवाह-सा मदमस्त हूँ अपनी धुन में,
कुछ दर्द है,पर जीवन चल रहा है।


इस धरती माँ पर कुछ तो रहम करो,
पर्यावरण बचाओ कुछ तो शरम करो,
धरा नही तो कुछ धरा नही रहेगा मंगलेश,
याद रखे नई पीढ़ी कुछ तो करम करो।


ओजोन पर्त में छेद हो रहा है,
मनुज आधुनिकता में खो रहा है,
समय रहते संभल जाओ  मंगलेश,
पूरा समाज मौत के साये में सो रहा है।


कब तक ज्ञान की बाते करते रहेंगे,
कब तक थोथे अहंकार में जीते रहेंगे,
अब तो सत्य-पथ-गमन कर मानव,
कब तक दूषित पानी पीते रहेंगे।


हर साल तो लाखो पौधे लगाते है हम,
चलो इस बार पर्यावरण दिवस नही मानते हम,
अब तक तो घनघोर जंगल हो गया होगा,
चलो सुंकुँ से सैर-सपाटे पर निकल जाते हम।


खुद ही कब्र का सामान जुटाते जा रहे है,
मिलावट करके मौत को बुलाते जा रहे है,
ज़हर बोओगे तो ज़हर ही काटना पड़ेगा,
हम ही अपना अस्तित्व मिटाते जा रहे है।


आदित्य से तम हटेगा,
साहित्य से भ्रम हटेगा,
वृक्ष लगावो मेरे भाइयो,
तभी यह जीवन बचेगा।


धर्म की बाते बहुत हो गई विशेष,
कर्म से बदलना होगा यह परिवेश,
भागवत से कुछ नही होने वाला,
गीता पर ही चलना होगा मंगलेश।
          
डॉ मंगलेश जायसवाल कालापीपल
9926034568.


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