डॉ. प्रभा जैन "श्री "  देहरादून लुभावनी धूप 


डॉ. प्रभा जैन "श्री " 
देहरादून


लुभावनी धूप 
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माँ मेरी लुभावनी धूप सी 
लिया मैंने जन्म 
ठंडी -ठंडी जनवरी  में, 
नरम सा स्पर्श और 
उसका मुझे सूखे में रखना, 
सुख देने की चाह में 
भरे कितने कष्ट 
माँ मेरी लुभावनी धूप सी.
 
कोरी गई तीन  पीढ़ी 
नहीं मिली कन्या -सौगात 
हुआ मेरा पालन -पोषण ऐसा 
राजकुमारी उतर स्वर्ग से आई जैसे 
मेरी सेवा करने में, 
माँ ने किये दिन-रात एक 
माँ मेरी लुभावनी धूप सी 


हो गई मैं जरा बड़ी पर
उनकी नज़र में,अभी बच्चीसी
 हर पल पर उनका ध्यान देना 
याद आता हैं माँ,अब हर पल, 
तुमहो मेरे जीवन की खिड़की सेंकती  मैं, लुभावनी धूप 
माँ मेरी लुभावनी धूप सी.


हूँ मैं तुम्हारी, कृतज्ञ, माँ 
सँवारा मेरा जीवन, जिस तरह
अब मैं वैसा ही फ़र्ज निभारही 
बन रही मैं भी,  लुभावनी धूप
हर पल मैं तुमको याद क़ररही 
माँ    मेरी   लुभावनी धूप सी.
 
माँ    मेरी  लुभावनी धूप सी. 


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री " 
देहरादून


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