डॉ रामकुमार चतुर्वेदी रामबाण चमचावली

*राम बाण🏹 चमचावली*
           *स्तुति*


पढ़कर ये चमचावली, जानो चम्मच ज्ञान।
सफल काज चम्मच करे,कहते संत सुजान।।


जीवन चम्मच संग है, चम्मच से पय पान।
चम्मच  देता अंत में , गंगा जल का पान।।


चम्मच जिनके पास है,चम्मच उनके खास।
जिनसे चम्मच दूर है,उनको मिलता त्रास।।


नित चम्मच  सेवा  करें, मिलता अंर्तज्ञान।
हिय चम्मच जिनके बसे,रहता अंर्तध्यान।।


जिनके काम न हो सके, चमचे करें उपाय।
बदले में मिलती रहे, ऊपर की कुछ आय।।


आय कमीशन  स्त्रोत है, चमचे करते पास।
जिसको कमीशन न मिले,घूमें फिरे उदास।।


हाथ जोड़कर स्तुति करें,मन्नत माँगे भीख।
चमचों  से न बैर रखो, देते  हमको सीख।।


चम्मच  हमने  हैं चुने, चुने  बहुत ही रूप।
लेकर  चम्मच  हाथ  में, पीते  रहते  सूप।।


चमचों के ही राज में , चम्मच करते काम।
अपना उल्लू  साधते, लेकर कुछ ही दाम।।


नालायक   में  श्रेष्ठ   हैं,  वरद  पुत्र सर्वज्ञ।
चम्मच  प्रधान देश में, चमचे  सबसे तज्ञ।।


चमचों की चमचावली,करती चम्मच मान।
दुनिया में जो श्रेष्ठ है, चम्मच उसको जान।।


           *चम्मच राज*


पाँव पकड़ विनती करें, सिद्ध करो सब काम।
अपना हिस्सा तुम रखो,कुछ अपने भी नाम।।  


 बिगडे तो कुछ सोच लो, काम बिगाडे़ आप।
 नागों के  हम  नाग हैं, बिषधर के भी बाप।।


 चम्मच  कोई  काम  लें, करना  मत इंकार।
 बैठें  पाँव  पसार  कर,  सज जाते  दरबार।।


नेता  संग   सैर  करें ,   चमचे   खेलें  दाँव।
अगर मगर होता नहीं, हो जाता अलगाँव।।


भैया जी  के  दाम  पर,  ऊँचे  लगते  बोल।
चमचे मुँह जब खोलते, खोले सबकी पोल।।


 राज  रखे  सब पेट  में ,  नहीं खोलते राज।
 जिस राज से राज करें,  नेता चमचे आज।।


राजदार के राज  में , राज  करें  गद्दार।
सत्ता  सेवा  चाकरी, करते हैं  मनुहार।।


पोल खोलते जब कभी,हो जाती हड़कंप।
कुर्सी  डोले  डोलती , आ जाता  भूकंप।।


सेवा  में  सरकार के , करते  बंदर  बाट।
अच्छे पद की चाह में,देश बाँटकर चाट।।


राजनीति  के मंच से, चमचे चलते चाल।
लक्ष्मी पूजा पाठ की, सज जाती है थाल।।


चम्मच  बदले  भेष को,  बदले  बेचे  देश।
बस उनको मिलता रहे,बदले में कुछ कैश।।

      *व्यापक चम्मच*


 चम्मच वश चलता रहे,काम करे भरपूर।
उसके बदले  नोट  से ,  करते  हैं  दस्तूर।।


 चमचे  इस संसार में, बाँट लिए हैं क्षेत्र।
अपने कौशल काम से, खोलें सबके नेत्र।।


शिक्षा पूरी  हैं  नहीं ,  रखते  पूरा ज्ञान।
चम्मच अपनी पैठ से,करवाता सम्मान।।


डिग्री  धारी  सोचते, पद  पाते  हैं चोर।
कैसे चम्मच के बिना, लगे न कोई जोर।।


सेवक साधू साथ तो,फल पाओ श्रीमान्।
चम्मच नेकी कर्म में, रमा हुआ तू जान।।


साक्षर करते देश में, शिक्षा के अभियान।
चमचों की भर्ती करें,व्यापम का संज्ञान।।

कैसे  पास  हुये  सभी,    शासन   है   हैरान।
पकड़ा  धकड़ी  शुरु  हुई,  बन  बैठे   हैवान।।


व्यापम यम का नाम था, पैसों  का  था जोर।
अच्छी  प्रतिभा छोड़कर, चुन  बैठे  थे चोर।।


कितने  तो  मरकर  हुए,  राजनीति  के  खेल।
 कुछ तो चमचों की शरण,कुछ को होती जेल।।


पास - फेल  के  खेल में,  दाँव - पेंच  की जंग।
कला कुशलता  के  धनी, चमचे  उनके  संग।।


     *डॉ रामकुमार चतुर्वेदी*


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