डॉ0 नीलम अजमेर प्रभा*  बिखेर कर रविकिरणें भोर मुस्करा गई

आज का शब्द........


        *प्रभा* 


बिखेर कर रविकिरणें
भोर मुस्करा गई
रजनी ने करवट ली
प्राची-प्रभा खिलखिला गई


वंदन शंखनाद से मंदिरों ने किया
अर्चन अजान से मस्जिदो ने किया


परिंदे पंख पसार परवाज 
भरने लगे
नन्हें छोने खोल चोंच कलरव करने लगे


जाग कर सड़कें ईधर-उधर भागने लगीं
पेट की आग में इंसान से करतब कराने लगी


कलियों ने भी पंख खोल
वातावरण महका दिया
भोर का सितारा भी ठिठक कर अपनी राह चल दिया


घर- आँगन ,द्वार-दहलीज़
सब खुल गये
नर-नारी सब अपने-अपने कर्म में लग गये।


     डा.नीलम


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511