डॉ0 नीलम अजमेर
ऋतुराज
भंवरों ने छेड़ा मधुर राग
कलियों का खोला घूंघट आज
छूआ जो पी ने हौले से गात
फूलों से महकने लगा
चमन का हर कोना आज
मौसमों का बनकर सरताज
आया आज *ऋतुराज*
पेड़ों से उतर गये जर्जर पात
झूम के शाखों ने फिर किया
नव श्रृंगार
खेतों पर छाया पीली सरसों का खुमार
फूलों की रंगीन दुनिया का सरताज आया आज *ऋतुराज*
लहक-लहक वन- उपवन में
मदिरामय भौरों के सुर गूंजे
पंछियों ने छेड़ी तान ,आम्र बौर महक गये
सौधी-सौंधी खुश्बू लेकर आया *ऋतुराज*
हवाओं ने छेड़ा बसंत राग
थिरका गया आँगन ,आया धूप में निखार
दिवस की सिहरन गई,
ठिठुरती रात को आया आराम
गुलाबी नरम-गरम शीत लेकर आया *ऋतुराज*
डा.नीलम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511