एस के कपूर " श्री हंस"*
*बरेली*
विविध हाइकू।।।।।।।।।।।।।*
महा नगर
संवेदनाएं शून्य
मौन डगर
ये पहनावा
फटी हुई जीन्स ये
कैसा दिखावा
यह मुस्कान
लोकप्रियता की ये
मानो दुकान
वाणी की आरी
यह तो है सबसे
तेज़ कटारी
यह सावन
मौसम बहुत ही
मन भावन
यह बसंत
शरद ऋतु का ये
जैसे हो अंत
भाषा नमन
साहित्य समाज का
होता दर्पण
शब्द कलश
अमृत विष भरे
कटुता हर्ष
स्वर्ग नरक
तेरे अपने हाथ
हर तरफ
यह भक्षक
और हमारे बीच
भी हैं रक्षक
*रचयिता।।।एस के कपूर " श्री हंस"*
*बरेली*
*मोबाइल।* 9897071046
8218685464
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