एसिड अटैक पीड़ित बेटी का दर्द...😢😢
सुंदर मुखड़े पर मेरी माँ
लाख बलाएँ लेती थी।
मनमोहक मुस्कान देखकर
मुझे दुआएं देती थी।।
चाँद से उज्जवल चेहरे पर मैं
मन ही मन इठलाती थी।
राजकुंवर ही वरण करेगा
सोच हॄदय शरमाती थी।।
घर आई है साक्षात लक्ष्मी
सास ससुर मन चहकेंगे।
स्वर्ग अप्सरा मान के प्रीतम
प्रेम मेघ बन बरसेंगे।।
लेकिन हाय मेरे सपनों को
रौंदा मानसिक विकृति ने।
रूप कुरूप हुआ पल भर में
अश्रु बहाया चिर प्रकृति ने।।
जलते अग्निकुंड में मानो
फेंक दिया हो चीर के।
कैसे व्यक्त करूँ पीड़ा को
शब्द झुलस गये पीर के।।
कौन मुझे अब प्यार करेगा
नहीं बनूँगी मैं दुल्हन।
हर मौसम होगा पतझड़ सा
रंगहीन होगा जीवन।।
कंचन काया हुई भयानक
मन ही मन दर्पण रोया।
सुनो निर्दयी हिंसक नर पशु
धैर्य नहीं मैंने खोया।।
चंद बूँद तेज़ाब की मेरे
स्वप्न जला न पाएगी।
देख हौसला हॄदय का मेरे
पीड़ा स्वयं लजायेगी।।
मात्र विक्षिप्त हुआ तन मेरा
मन तो अभी सुनहरा है।
सुंदर तन का सूर्य अस्त पर
उर में हुआ सवेरा है।।
हे प्रभु!ऐसे मानव पशु को
धरा पे जन्म नहीं देना।
विनती है यदि पिता बने वो
बेटी दान यही देना।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
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