गजल सुनीता असीम ,यहाँ सबके बने प्यारे मकाँ हैं।

 


सुनीता असीम


यहाँ सबके बने प्यारे मकाँ हैं।
मुहब्बत है कहीं और तल्खियाँ हैं।
***
बुराई की जिन्हें आदत रही हो।
वहीं उनकी बुरी बीमारियाँ हैं।
***
जहाँ होता दखल मां बाप का बस।
सदा टूटी वहीं पर शादियां हैं।
***
नियत होती बुरी है आदमी की।
निशाना सिर्फ होतीं लडकियाँ हैं।
***
अकेला वो नहीं बेशक गगन में।
वहाँ पर तो हजारों आसमां हैं।
***
सुनीता असीम
२४/१/२०२०


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