एक घनाक्षरी
सादर समीक्षार्थ
महकी बयार हैं तू, इत्र की फुहार हैं तू,
चलती हैं ऐसे जैसे, हिरनी की चाल हो।
लट लटकाती कभी, मन मुसकाती कभी,
देती हैं जवाब जैसे, करती सवाल हो।
ये रूप हैं गुलाब सा, ह्रदय के हिसाब सा,
ऐसे झूमती हैं जैसे, सुमनों की डाल हो।
ये चंचल नयन हैं, ये पावन भी मन हैं,
बड़ा इठलाती जैसे, करती धमाल हो।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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