गोपाल बघेल ‘मधु’ टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
भव भय से मुक्त अनासक्त !
(मधुगीति २००१२२ अग्रसा) ब्रज
भव भय से मुक्त अनासक्त, विचरि जो पाबत;
बाधा औ व्याधि पार करत, स्मित रहबत !
वह झँझावात झेल जात, झँकृत कर उर;
वो सोंपि देत जो है आत, उनके बृहत सुर !
जग उनकौ लहर उनकी हरेक, प्राणी थिरकत;
पल बदलि ज्वार-भाटा देत, चितवन चाहत !
चहुँ ओर प्रलय कबहु लखे, लय कभू लगे;
विलयन की व्यथा मीठी लगे, साधना मखे !
आधार धार कबहु बहत, ऊर्द्ध्व भाव बह;
‘मधु’ त्रिलोकी की तर्ज़ सुनत, जगत में रमत !
✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’
रचना दि. २२ जनवरी २०२० रात्रि
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
www.GopalBaghelMadhu.com
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