गोविंद भारद्वाज, जयपुर

अंगारा हूँ अगर तपन से प्यार करो तो आ जाना,
मैं पागल दीवाना हूँ, स्वीकार करो तो आ जाना,
मेरे दिल की दिल्ली पर अधिकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


सोया दर्द जगाया तूने, महकी चाँदनी रातों में,
बिरहा की अग्नि में जलता, सावन की बरसातों में,
सूना मन मन्दिर है ये, श्रृंगार सजाने आ जाना।
आवारा बादल हूँ मैं, तुम बदली बनकर छा जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


तुमने चाही छाँव घनेरी, मैंने तपती धूप चुनी,
तुमने दिल की एक न मानी, मैंने मन की बात सुनी,
वीणा के तारों में तुम, झंकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


तेरी साँसों की सरगम से जाने कितने गीत सुने,
पलकों पर हँसते जख़्मों ने जाने कितने स्वप्न बुने,
बेबस गूँगे सपनों पर, उपकार करो तो आ जाना
मेरे दिल की दिल्ली पर अधिकार करो तो आ जाना।
अंगारा हूँ अगर ..........................................................


गोविंद भारद्वाज, जयपुर


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