गोविंद भारद्वाज, जयपुर
गीत
द्वारे-द्वारे दस्तक देकर, लुटा हुआ बंजारा सा।
बैठा यमुना-घाट के ऊपर, थका हुआ बटमारा सा।।
कौन दुलारे मेरी पीड़ा, कौन सँवारें दर्पण को,
कौन सजाये सपने मेरे, कौन बुलाये प्रियतम को,
आज उलाते बेच के बैठा, मैं तो एक अंधियारा सा।
द्वारे-द्वारे दस्तक देकर...................................................
बुझी आरती का दीपक हू, कौन मुझे अपनाने वाला,
कौन पुजारी है जो दे दे, आज मुझे अमृत का प्याला,
कब ये पूर्ण तपस्या होगी, मैं बैठा ध्रुवतारा सा।
द्वारे-द्वारे दस्तक देकर...................................................
तुझे मिले वो रजनीगंधा, मुझे मिले काँटों का ताज,
तुझे मुबारक ये शहनाई, मुझे मिले ये टूटे साज़,
तूे मेरा गंगाजल सजनी, मैं बैठा जलधारा सा।
द्वारे-द्वारे दस्तक देकर...................................................
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