गोविंद भारद्वाज, जयपुर गीत
उड़ता हूँ पंख लगा आसमान छूने को
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट आता हूँ।
क्षितिज बहुत दूर मगर छूने की ठानी है,
हौंसला है पंखों मंे हार नहीं मानी है,
भाषा संकल्पों की अविरल दोहराता हूँ।
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट................
लक्ष्य है कठिन लेकिन भेदकर ही मानूँगा,
हार-जीत क्या होती युद्ध से ही जानूँगा,
सीमाएँ तोड़ सभी विजय गान गाता हूँ।
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट................
पीता जो गरल वहीं शंकर बन जाता है
सागर मंथन से ही अमृत घट आता है
आशा बंजारन को रस्ता दिखलाता हूँ।
छोर नहीं पाता हूँ लौट लौट................
धरती का पुत्र मगर ब्रह्मा बन जाऊँगा,
आसमान मुट्ठी में लेकर ही आऊँगा,
पैने हैं पंख बहुत मंज़िल तक जाता हूँ।
लौट कर भी आता हूँ, चाँद को भी लाता हूँ।
गोविंद भारद्वाज, जयपुर
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