हीरालाल

*ग़ज़ल*
221 2121 1221 22/212


पर्वत  की दिल को आस थी, तिनका नहीं मिला।
इंसान   का  इंसान   से  रिश्ता   नहीं  मिला।


शिकवा  गिला  जिसे न कोई ज़िन्दगी से हो
इंसान    कोई   दह्र   में  ऐसा  नहीं  मिला।


औरों की ज़िन्दगी  है  क़रीने  से  चल रही
हमको  ही  ज़िन्दगी का तरीका नहीं मिला।


तब  तक  ही बस शरीफ़ है दुनिया में आदमी
जब तक  गबन  का  ठीक सा मौका नहीं मिला।


तूफ़ाँ  से  डर  के  जिसने भी  पतवार छोड़ दी
डूबा  भँवर  में  उसको  किनारा  नहीं मिला।


किस्मत अलग अलग  लिखा के आये हैं तभी
*हीरा* सभी  को  एक  सा  मौका नहीं मिला।


                     हीरालाल


दह्र-संसार


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