हीरालाल गजल
सराबों में जीवन बिताया न कर।
हक़ीक़त से नज़रें चुराया न कर।
मुकम्मल नहीं जो कभी हो सके
वो सपना किसी को दिखाया न कर।
बुराई के पथ पर बढ़ा कर कदम
सुकूँ चैन दिल का गँवाया न कर।
हुआ सो हुआ दिल उसे भूल जा
सहर शाम आँसू बहाया न कर।
फ़रेबों से *हीरा* जहां है भरा
ज़माने की बातों में आया न कर।
हीरालाल
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