इन्दु झुनझुनवाला सम्पादक काव्य रंगोली गीत--
दिल में नश्तर चुभे,ठोकरों भी लगी।
वो काँटों पे काँटे बिछाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
कोई अपना ना कोई पराया यहाँ,
मील का हर निशां ये बताता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
जंग दिल में लगी ,जंग होने लगी,
तीर तर्को के वो फिर चलाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
मील के पत्थरो से पता पूछते ,
हरेक बार धोखा ही खाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
रिश्तो के शहर में ,ना ठिकाना मिला,
सम्भलता कभी डगमगाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
जब खुद से पता पूछने लग गए,
साथ खुद का हमें रास आता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
अब ना कोई फिकर, है मन में सबर,
मन का दीपक अंधेरा मिटाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
रास्तों के जंगल महकने लगे ,
रोशनी से शहर जगमगाता गया।
इन्दु बढता कदम कुछ सिखाता गया।
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