*आलोक लोक सेवा संस्थान (रजि0)*
दिवस: रविवार
दिनांक: 19-01-2020
*सादर समीक्षार्थ प्रस्तुत*
मनहरण घनाक्षरी।
(1)
प्रेम के जो भाव मिले दिल छू गए हैं आज,
भाव जहाँ दिव्य सुखधाम है स्वतंत्रता
शब्द शर से जो लगे घाव उन्हें पूरें यहाँ
कष्ट हरे सब के वो नाम है स्वतंत्रता
कामना से दूर करे वासना से मुक्त करे
प्रेमयुक्त ललित ललाम है स्वतंत्रता
छदमवेश धारी लगे संस्कार लुप्त करें
हुई आज देखो बेलगाम है स्वतंत्रता।
(2)
प्रेम में मगन जो हैं सतरंगी सपने ले,
बुन बुन उन्हें अतिशय सुख पाते हैं।
वेगवती प्रेमिका है चाँदनी सी प्रीति लिए,
मन में बसी है किंतु देख के लजाते हैं।
स्नेह अंतरात्मा का नयनों का नीर बने,
बोल अधरों पे किन्तु कह नहीं पाते हैं।
उपजें ही बरबस भाव यहाँ मन में जो,
भाव वही छंदबद्ध गीत बन जाते हैं।
(3)
दूसरों के पेट की क्षुधा को तृप्त करें यदि,
आज सबसे बड़ा यही तो मित्र धर्म है।
धर्म है निभाना यदि अहंकार त्यागकर,
इसे त्यागने में साथी कैसी आज शर्म है।
शर्म है अगर आज काम कुछ बने नहीं,
काम जो बनाये सदा वह सत्य कर्म है
कर्म है वही करें जो वश में हमारे यहाँ,
इसे पहचानें यही धर्म का जो मर्म है।
(4)
राम की ही भक्ति की व व्रत उपवास किये,
मन में तो कामना थी बस मित्र दाम की।
दाम की ही कामना में फँसते गये थे मित्र,
लगन लगी थी रोज रोज नए काम की।
काम की जो आग लगी तपने लगा शरीर,
वासना में डूबे रहे फिक्र न थी नाम की।
नाम की ही महिमा में डूबा मन जब आज,
अपने हृदय में दिखी छवि श्री राम की।
(5)
जीवन को जीते जीते अपने से हुए दूर
अवगुण त्याग गुण धारने में जीत है
कहता जो प्यार उसे पल में ही मान जाँय,
रूठे हुए प्रिय को पुकारने में जीत है।
कामना सताए यदि अपने को साध साध
वासना दमित करें मारने में जीत है।
सत्य ही स्वीकार करें त्याग त्याग अहंभाव
त्रुटियों को अपनी सुधारने में जीत है।
(6)
छद्मवेशी छल छंद से बचेंगें आप जब,
मन में अज्ञान का ये कोहरा न छायेगा।
अंधकार दूर करने को बनें ज्ञान पुंज,
ज्ञान सूर्य जग में तभी तो उग आएगा।
धर्मग्रंथ अपने सभी हैं शुद्ध इतिहास,
इन्हें पढ़े परिवार तो ही बल पायेगा।
आत्मसात इतिहास अपना करेंगे जब,
तभी सारे विश्व में तिरंगा लहराएगा।
--इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर
वरिष्ठ उपाध्यक्ष
आलोक लोक सेवा संस्थान।
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