इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव अम्बर सीतापुर गणतंत्र दिवस पर विशेष:
*'कुकुरमुत्ता और गुलाब'*
कुकुरमुत्ता और गुलाब
अलग-अलग हैं उनके जॉब
खुशबू के साथ के काँटें
इसी गुलाब ने हैं बाँटे
महककर चुभा देता हर बार
समूचे बदन को कर देता तार-तार
छलता है कभी बोलकर हे राम!
किन्तु है अंतर में लाल सलाम
पच्छिम जा ले आया सभ्यता नयी
बढ़ाया कद पर खुशबू तो गयी
असलियत जानते हैं बस ग्रंथी
कमीनेपन में हो गया कामपंथी
डाल पर इतराता
बगीचे में बरगलाता
पहना बन्द गले का जो कोट
चाहता चम्पाकली का वोट
बाँध कर गले में मफलर
खुद तो कहता है सेक्युलर
चुभाता अनगिनत खार
बस यही है तेरा प्यार
जाति के नाम पर माँग मत भीख
कुकुरमुत्ते ने दी उसको अच्छी सीख
बना सबको बेवकूफ गुलाब छा गया
पर कुकुरमुत्ते पर अनायास ही ताव खा गया
बोला क्यों उलझ रहा है बिन बात
कुकुरमुत्ते! क्या है तेरी औकात?
एक पल में धो दूँगा
देख ले काँटे फाड़कर रख दूँगा
बोला कुकुरमुत्ता उसकी ओर घूम
अकेला मत समझना मैं हूँ अब मशरूम
कितने भी तू कर ले जतन
निकाल आँखें लग जाऊँगा बनकर 'बटन'
उधर देख मेरी टॉक्सिक लुगाई
पल में तेरे प्राण ले लेगी भाई
तू मुझे चाहकर भी खत्म नहीं कर पाता
क्योंकि अब मैं भी हूँ उगाया जाता
इसलिए अब राष्ट्रवाद की ही सह
देशद्रोही मत बन औकात में रह!
--इंजी0 अम्बर
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