कह मुकरी डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव."प्रेम" सीतापुर।

कह मुकरी 


खेलूं जिस से रंग हमजोली ,
घूमे  जिसमें घर-घर टोली ,
संभले जिससे रंग हुड़दंग,
 क्या सखि साजन , न सखि ढंग।


 जिस पर कान्हा रास रचाये,
 गोपी हमको रही बताये,
 घायल कर दे चंचल चितवन ,
 क्या सखि राधा ,ना सखि निधिवन। 


 जिससे हर्षित झूम चकोर ,
 नाचे देख जिसे मन मोर ,
 सुख पाता मन हर्षित "नंदा" 
 क्या सखि साजन ना सखी चंदा।


 जिसके आते रौनक आये,
 फौरन चहल पहल हो जाये, 
  जिसकी मीठी लगती  झिड़की।
  क्या सखि साजन,  ना सखि     लड़की ।


स्वरचित ,मौलिक रचना
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव."प्रेम" सीतापुर।


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