कन्हैया लखीमपुरी"
गीतिका
काजू बर्फी चाट समोसा लाते लेमनजूस वगैरह,
साहब को दफ़्तर मेँ जिस दिन मिल जाती है घूस वगैरह।
काश दिहाड़ी लग जाती जो रघुवा की बारिश से पहले,
छप्पर-छानी खातिर वो भी ले लेता कुछ फूस वगैरह।
दादा जी की हालत नाजुक भाभी ने भेजी है चिट्ठी,
जिद करता है पूरा घर तो पी लेते हैँ जूस वगैरह।
जाड़े आते सोहन मुनिया जिद करते कपड़ोँ की लेकिन,
आस लगाये कट जाते हैँ कातिक अगहन पूस वगैरह।
नेताओँ की चमचागीरी करते करते अनपढ़ बुधुवा,
घर मेँ भूँजी भाँग नही पर हो आया है रूस वगैरह।
उस चराग का जलते रहना नामुमकिन है तूफ़ानोँ मेँ
जिस चराग के दुश्मन होँ खुद बाती और फानूस वगैरह।
इस दुनिया मेँ लाख जुबानेँ किस -किस पर डालूँ मै ताला,
कोई कहता मुझे "कन्हैया"और कोई मनहूस वगैरह।
"कन्हैया लखीमपुरी"
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