कवि नितिन मिश्रा 'निश्छल' रतौली सीतापुर

व्यंग्य नही है कविता मेरी हास नहीं हैं गीत मेरे । कोमल चंचल चितवन का आभास नहीं हैं गीत मेरे ॥ राधा की पायल मोहन का रास नहीं हैं गीत मेरे । हैं बशंत के फूल नहीं मधुमास नहीं हैं गीत मेरे ॥ मैं फूलों की जगह खार के हार बनाकर निकला हूँ । आज कलम मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ गीत मेरे हाँथों की मेंहदी न माथे की रोली हैं । गीत मेरे आजाद सिंह के पिस्टल वाली गोली हैं ॥ गीत मेरे झांसी वाली रानी की अमर कहानी हैं । राजगुरू अशफाक भगत से वीरों की कुर्बानी हैं ॥ क्रान्तिकारियों का जुनून हैं इंकलाब का नारा हैं । जो पानी मे आग लगा दे ये ऐसा अंगारा हैं ॥ मैतो अपने गीतों को अंगार बनाकर निकला हूँ । आज कलम को मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ इन गीतों में चेहरा दिखता आदमखोर दरिन्दों का । अक्षर अक्षर नाम बताता है ज़ालिम जय चन्दों का ॥ गीत हमारे आस्तीन के साँपों की गद्दारी हैं । देश भक्त अब्दुल हमीद से वीरों की खुद्दारी हैं । इन गीतों में भारत माँ का घाव दिखाई देता है। नष्ट हो रहा आज एकता भाव दिखाई देता है ॥ अक्षर अक्षर से भाषा का ज्वार बनाकर निकला हूँ । आज कलम को मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ एक बात कहनी है मुझको संसद के दादाओं से । जो भारत को चाट गये ऐसे भुक्खड़ नेताओं से ॥ गीत नहीं हैं मेरे वंदन अभिनंदन दरबारों के । गीत नहीं मेरे माथे का चंदन हत्यारों के ॥ इन गीतों में पींड़ा है रक्तिम केशर के क्यारी की । बात उठी है इनमे केवल युद्धों के तैयारी की ॥ अर्जुन की खातिर गीता का सार बनाकर निकला हूँ । आज कलम को मैं अपनी तलवार बनाकर निकला हूँ ॥ कवि नितिन मिश्रा 'निश्छल' रतौली सीतापुर 8756468512


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