तेरी पलकों के साये में,
दिन रात गुजर कब जाते है।
मेरी आंखों में न जाने,
क्यों तेरे चित्र उभर कर आते है।।
नाहक सा लगता जीवन,
तेरे बिन पल पल लगता रूखा सा,
सावन की घोर घटाओं में,
मुझे तो लगता है सूखा सूखा सा।।
मैंने भी देखे थे सपने,
मिलेंगी प्यार भरी बौछारें मुझको।
तेरे हृदय वृक्ष के नीचे,
सुख देंगी बसंत बहारें मुझको।।
हिय चमन मुरझा गया,
जबसे मिला न स्नेह नीर तुम्हारा।
आंखों में वीरानी छाई,
जब तेरी वाणी का मिला न सहारा।।
परम् प्रकाशक बनकर,
मम हृदय ज्योति तुम आ जाओ।
पवित्र भाव प्रारब्ध रूप,
मम जीवन मोद से भर जाओ।।
प्रिया प्रेयसी हे प्रियतमा,
प्रेम प्रीति की पुंज मनोहर तुम।
प्रेरित रहूँ प्रेरणा पाकर,
परिणीति परिणय की प्रिय तुम।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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