लता प्रासर कविता चाहत पत्तों की तरह मैं

पत्तों की तरह
मैं भी हवा संग 
उड़ना चाहती हूं
भंवरों की तरह
मैं भी फूलों संग 
गुनगुनाना चाहती हूं
पंछियों की तरह
मैं भी आकाश को
गले लगना चाहती हूं
केंचुओं की तरह
मैं भी धरती संग
मिट्टी हो जाना चाहती हूं
लता की तरह
मैं भी पेड़ों संग
लिपट जाना चाहती हूं
पानी की तरह
मैं भी नदी संग
बह जाना चाहती हूं
चींटी की तरह
मैं भी मीठा संग
डूब मरना चाहती हूं
मछलियों की तरह
मैं भी धारा संग
सागर तक जाना चाहती हूं
आंसू की तरह
मैं भी आंखों संग
सजल हो जाना चाहती हूं
मां आपकी तरह
मैं भी भावों संग
विह्वल हो जाना चाहती हूं
पिता आपकी तरह
मैं भी जटिलता संग
कठोर हो जाना चाहती हूं
प्रिय तुम्हारी तरह
मैं भी प्रेम संग
प्रियसी हो जाना चाहती हूं!
लता प्रासर


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