लता प्रासर पटना बिहार
गुनगुनी धूप मुबारक
बूंद-बूंद बचाएंगे हम सब
हरियाली बढ़ाएंगे हम सब
धरती के कोने कोने में
बृक्ष लगाएंगे हम सब
*गुनगुनी धूप मुबारक*
दिया शब्द किसी एक बन वाक्य उससे खूब
नमन हर शब्द को उसी में जाऊं मैं भी डूब
प्रकृति की छटा अनोखी हुई मुलाकात उससे
खो दिए खुद को ही उसमें नहीं उससे कोई ऊब!
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