विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर, छ.ग.
इस जीवन से मुक्ति मिले
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बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले
जिवित रहूं तो मान बच सके
ऐसी कोई युक्ति मिले ।
भाषा शब्द बदलने लगते
फिर नयनों की भाव भंगिमा
कर्कशता हो बहुत प्रभावी
छूटे छाया और मधुरिमा
मान बचा पाउं मर जाउं
ऐसी कोई शक्ति मिले
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले ।
परिवर्तन के क्रूर पटल पर
आशाओं से परे घटे जब
किन कोनों मे जीवन ढूंढ़ें
खंड खंड मे हृदय बंटे जब
शब्द कैद हो निष्ठूरता के
फिर कैसे अभिव्यक्ति मिले
बार बार मरने से अच्छा
इस जीवन से मुक्ति मिले ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर, छ.ग. अभिव्यक्ति - 695
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